आईआईएम इंदौर के एक्ज़ीक्यूटिव पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (ईपीजीपी) के वार्षिक लीडरशिप कॉन्क्लेव की शुरुआत 12 दिसंबर, 2020 को ऑनलाइन मोड में हुई । इस वर्ष के सम्मेलन की थीम ‘आत्मानिर्भर भारत’- एक स्थिर और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का विकास’ है । इस दो दिवसीय कार्यक्रम में ह्यूमन कैपिटल और बिज़नस ट्रेंड्स के प्रबंधन पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए कुछ प्रभावशाली एचआर और व्यापार जगत के वक्ता शामिल होंगे ।
कार्यक्रम का उद्घाटन आईआईएम इंदौर के निदेशक प्रोफेसर हिमाँशु राय; प्रोफेसर सौम्य रंजन दाश, चेयर- ईपीजीपी; प्रोफेसर रंजीत नंबूदिरी, डीन-प्रोग्राम्स; और कर्नल गुरुराज गोपीनाथ पमिडी (सेवानिवृत्त), मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, आईआईएम इंदौर के साथ हुआ ।
आत्मानिर्भर भारत के बारे में अपनी राय साझा करते हुए, प्रोफेसर राय ने बताया कि कैसे आय असमानता की समस्या को समझना, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास दर को उत्प्रेरित करना, शहरी क्षेत्रों में मुद्दों को संबोधित करना, पर्यावरण के मुद्दों का समाधान खोजना और उद्यमशीलता की प्रेरणा पर ध्यान केंद्रित करना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । ‘मध्य प्रदेश में लगभग 264 हज़ार MSMEs हैं और इनमें से 90 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यम हैं । उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए हमें पहले इन 90 प्रतिशत समस्याओं का समाधान करना होगा’, उन्होंने कहा । उन्होंने उल्लेख किया कि जवाबदेही, अनुकंपा और उत्कृष्टता महत्वपूर्ण कारक हैं जो हमें एक आत्मानिर्भर भारत बनाने में मदद कर सकते हैं । ‘हमें अपने कार्यों के लिए जवाबदार होने की जरूरत है, हर चीज और हर किसी के लिए करुणामय होना चाहिए और जो भी नौकरी या कार्य हम करें, वह पूरी निष्ठा से करें, ताकि हम उत्कृष्टता हासिल कर सकें’, उन्होंने कहा ।
डॉ. कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन, मुख्य आर्थिक सलाहकार, भारत सरकार उद्घाटन के मुख्य अतिथि थे । उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के लिए निर्णय मानवीय सिद्धांत पर लिया गया था, यह समझते हुए कि अर्थव्यवस्था और जीडीपी को कुछ समय में फिर से बढाया जा सकता है, लेकिन हम एक बार खो चुके मानव जीवन को वापस नहीं पा सकते हैं । उन्होंने कहा कि लॉकडाउन ने हमें वक़्त दिया की हम हमारे स्वास्थ्य और परीक्षण बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ कर सकें ।‘इतनी अधिक जनसंख्या में भी अगर हम लॉकडाउन लागू नहीं करते, तो भारत में मृत्युदर बहुत ज्यादा बढ़ जाता’, उन्होंने बताया । उनका कहना है कि भले ही अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था फिर से सुधर रही है । हमारा लोकतंत्र दुनिया के किसी भी अन्य लोकतंत्र से अलग है क्योंकि इसमें इतनी संस्कृतियों और भाषाओं के लोग हैं; और इसलिए हमने महामारी के दौरान कई सुधारों को भी लागू किया है जिससे सभी लाभान्वित होंगे, उन्होंने कहा । आत्मानिर्भर भारत पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा कि आत्मानिर्भर का अर्थ खुद पर निर्भर होना है - जो हमारी क्षमताओं पर आधारित है; और क्षमताएं बिना प्रतिस्पर्धा के कभी प्रकट नहीं होती हैं । उन्होंने कहा कि शोध में निवेश के लिए दूरदर्शी सोच की आवश्यकता होती है, इसलिए भारतीय संगठनों के लिए दीर्घकालिक दृष्टि होना जरूरी है ।
ब्रूकिंग्स इंडिया की नॉन रेसिडेंट सीनियर फेलो डॉ. शमिका रवि ने अपने प्रमुख संबोधन में समझाया कि भारतीय अर्थव्यवस्था को 28-राज्यों की अर्थव्यवस्था के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसका नेतृत्व जीवंत राजनीतिक नेता करते हैं जो अपने राज्य के सीईओ के रूप में कार्य करते हैं; और अपने राज्यों में व्यापार लाने के लिए काम करते हैं । नेतृत्व ने हमेशा विभिन्न राज्यों के विकास को प्रभावित किया है’, उन्होंने कहा । उन्होंने बताया कि विकास सरकार और राष्ट्रों द्वारा अपनाई गई नीतियों पर निर्भर करता है । दक्षिण कोरिया और चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में कैसे बढ़ी, इसका उदाहरण देते हुए, डॉ. रवि ने कहा कि यह भारत के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में प्रवेश करना का समय है। आत्मनिर्भर भारत पर अपने विचार साझा करते हुए, उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता के पीछे हमारा विचार हमारे उद्योगों की रक्षा करना नहीं है, बल्कि उन्हें इस काबिल बनना है कि वो विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें । हमें उभरते बाजारों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए श्रमिकों की मदद करने और क्षमताओं को विकसित करने के लिए देश भर में औद्योगीकरण की आवश्यकता है । स्नातक आज उन नौकरियों के प्रस्ताव स्वीकार नहीं करते जिन्हें पसंद नहीं करते हैं। इसी तरह, उद्योग उच्च-कुशल श्रम खोजने में सक्षम नहीं हैं। नीति निर्माताओं के लिए इस मुद्दे को हल करने और कौशल और डिग्री के बीच संतुलन बनाने का समय है ।
प्रबोधन 2020 के पहले दिन ‘डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन एंड स्ट्रेटीज़िंग फॉर द रेटिंग ऑफ़ आत्मनिर्भर भारत’ पर पैनल डिस्कशन भी हुआ । श्री अर्पित नारायण, ग्लोबल हेड ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज, मैथवर्क्स; श्री गौतम शिवबालन, लीड-मैन्युफैक्चरिंग एक्सीलेंस, वी-गार्ड; श्री रुद्र सरकार, कॉर्पोरेट वाईस प्रेसिडेंट, डब्ल्यूएनएस ग्लोबल सर्विसेज; श्री संजीव पाठक, प्रमुख, सीएमआईटी इंडिया बिज़नेस, एचपी और श्री विशाल जैन, पार्टनर, डेलोइट इंडिया, इसमें पनेलिस्ट थे । इसका संचालन प्रो. राजहंस मिश्रा, फैकल्टी, आईआईएम इंदौर ने किया ।
इस अवसर पर ईपीजीपी के चेयर प्रो. सौम्य रंजन दाश और डीन प्रोग्राम्स- प्रो. रणजीत नम्बूदिरी ने भी प्रबोधन की टीम की सराहना की ।
प्रबोधन के दूसरे दिन का मुख्य आकर्षण था एक पैनल डिस्कशन जिसका विषय था – ‘क्या भारतीय कार्यबल आत्मनिर्भर भारत के लिए तैयार है- चुनैतियां और भविष्य’ । सुश्री भावना मिश्रा, एचआर डायरेक्टर, पेप्सिको; श्री गौरव पंडित, डायरेक्टर-टैलेंट मैनेजमेंट, फ्लिपकार्ट; श्री प्रखर त्रिपाठी, डायरेक्टर, डेलोइट इंडिया और श्री संतोष घाटे, वाईस प्रेसिडेंट और एचआर हेड, गार्टनर इंडिया इस सत्र के पैनलिस्ट थे । सत्र का संचालन प्रोफेसर श्रीहरि सोहानी, फैकल्टी, आईआईएम इंदौर ने किया।
आत्मनिर्भर भारत पर अपने विचार साझा करते हुए, श्री घाटे ने कहा कि भारतीय जनसंख्या का 7 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे है और भारत का केवल 1 प्रतिशत 17 लाख रुपए से अधिक कमाता है ; जबकि 10 प्रतिशत जनसंख्या 53-70 लाख रुपए कमाती है । ‘देश की सीसी 90 प्रतिशत जनसँख्या के लिए आत्मानिर्भर होना आवश्यक है । आत्मनिर्भर भारत, देश को दुनिया से अलग करने का नहीं बल्कि मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड, यानि दुनिया के लिए भी उत्पादन करने के बारे में है’, उन्होंने कहा । उन्होंने कहा कि शिक्षा, वित्तीय समावेशन और क्रेडिट तक पहुंच; और व्यापार करने में आसानी, तीन महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जो कि आत्मानिभर भारत को प्राप्त करने में मदद करते हैं ।
श्री पंडित ने कहा कि कुशल श्रम शक्ति एक आत्मनिर्भर राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ‘एमएसएमई हमारी जीडीपी में प्रमुख भूमिका निभाते हैं और अर्थव्यवस्था को बढ़ाते हैं। यह लोगों के लिए अधिक अवसर पैदा करने का समय है जिनमें वे अपने कौशल को बढ़ाने और अपने व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं । वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए युवा इन दिनों सरकारी नौकरी पसंद करते हैं। कुशल कार्यबल प्राप्त करने के लिए असमानता को निवेश के साथ-साथ कई स्तरों पर संबोधित किया जाना चाहिए’, उन्होंने कहा ।
सुश्री मिश्रा ने उल्लेख किया कि लगभग 97 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक शिक्षा में दाखिला लेते हैं और 70 प्रतिशत बच्चे उच्च माध्यमिक में दाखिला लेते हैं। सिर्फ 26 प्रतिशत छात्र उच्च शिक्षा में दाखिला ले पाते हैं। ‘हमें इस अंतर को दूर करने और शिक्षा की गुणवत्ता के मुद्दे को समझने की आवश्यकता है। यही कारण है कि हम कुशल श्रमिक खोजने में सक्षम नहीं हैं ', उन्होंने कहा।
वर्क फ्रॉम होम और डिजिटलीकरण पर श्री त्रिपाठी ने उल्लेख किया कि अगर हमें वैश्विक स्तर पर एक देश के रूप में प्रतिस्पर्धा करनी है, तो डिजिटलीकरण बेहद ज़रूरी है -बात चाहे विनिर्माण की हो या किसी अन्य क्षेत्र की। डिजिटलीकरण अनिवार्य है और नौकरी की प्रकृति और किसी भी कार्य को करने के तरीके को बदलता है। उन्होंने कहा कि अद्वितीय मूल्य प्रस्ताव बनाने की संगठनों की क्षमता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों को कम लागत पर कैसे ला सकते हैं।
यह पैनल चर्चा एक प्रश्नोत्तर सत्र के साथ संपन्न हुई, जिसमें पैनलिस्टों ने इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रतिभागियों के प्रश्नों का उत्तर दिया।
इस अवसर पर, एक बुक लॉन्च समारोह भी हुआ । ईपीजीपी बैच 2020-21 के प्रतिभागी शिव कुमार की पुस्तक ‘चलो नया सपना बुनते हैं’ का विमोचन प्रोफेसर रंजीत नंबुदिरी, डीन-प्रोग्राम्स, आईआईएम इंदौर द्वारा डिजिटली किया गया।
प्रबोधन की केस स्टडी कम्पटीशन ‘मंथन’ में लगभग 150 प्रतिभागी शामिल हुए जिन्होंने 1 लाख रूपए के पुरस्कारों के लिए अपने केस सबमिट किये । श्री प्रवीण सिन्हा, सीईओ और एमडी, टाटा पावर लिमिटेड और प्रोफेसर स्वप्निल गर्ग, फैकल्टी, आईआईएम इंदौर इसके निर्णायक थे ।
समापन के दिन एक इंटरैक्टिव डिजिटल क्विज़ भी आयोजित किया गया, जहाँ प्रतिभागी टीमों ने 30 हज़ार रुपए के पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धा की ।